With a passion for understanding how the human mind works, I use my expertise as a Indian psychologist to help individuals nurture and develop their mental abilities to realize lifelong dreams. I am Dr Manju Antil working as a Counseling Psychologist and Psychotherapist at Wellnessnetic Care, will be your host in this journey. I will gonna share psychology-related articles, news and stories, which will gonna help you to lead your life more effectively. So are you excited? Let go

फ्रायड : व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त| FREUD PSYCHOANALYTIC THEORY OF PERSONALITY


फ्रायड (Sigmund Freud 1856-1939) का जन्म यहूदी परिवार में चैकोस्लोवाकिया में हुआ। वह सन् 1885 में शाकों के पास पैरिस गया जहाँ उसने न्यूरोलॉजी का अध्ययन किया। बूअर (Joseph Breuer) के साथ उसका पहला प्रकाशन सन् 1839 में Psychic Mechanisms पर प्रकाशित हुआ। सन् 1895 में बूअर के साथ हिस्टीरिया का अध्ययन किया। Psychopathology of Everyday Life का प्रकाशन सन् 1904 में हुआ। फ्रायड के कुछ प्रमुख प्रकाशन निम्न प्रकार से है-Three Contributions to the Theory of Sex (1905), Unconscious (1915), Pleasure Principle (1920), The Ego & The Id (1923) आदि। फ्रायड के विचार और रचनाएँ 210वीं शताब्दी के प्रथम चार दशकों तक असामान्य मनोविज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रभावपूर्ण रहीं। समाज विज्ञानों और साहित्य के क्षेत्र में फ्रायड के योगदानों से नये आयाम उत्पन्न हुए। फ्रायड द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व सिद्धान्त मनोविज्ञान का और चिकित्सा मनोविज्ञान का यह पहला व्यापक सिद्धान्त है जिसमें मानव व्यवहार की व्याख्या अतल गहराइयों को स्पर्श करती हुई है। उसने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोचिकित्सकीय अध्ययनों के आधार पर किया है।

फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धान्त का उपागम (Approach) गत्यात्मक (Dynamic) है। गतिक उपागम (Dynamic Approach) में यह माना जाता है कि प्राणी वातावरण या परिवेश में (Organism in Environment) है। इस उपागम का अर्थ प्राणी बनाम वातावरण (Organism Vs. Environment) नहीं होता है। इस उपागम में यह माना जाता है कि व्यक्ति की वातावरण के साथ अन्तक्रिया होती है और इसी अन्तक्रिया (Interaction) के आधार पर उसमें दैहिक शीलगुण विकसित होते हैं। 

मनोविश्लेषण का अर्थ (Meaning of Psychoanalysis)

सामान्यतः मनोविश्लेषण के तीन अर्थ हैं--(1) प्रथम स्थान पर यह प्रविधि (Technique) है। इसके माध्यम से एक व्यक्ति के मानसिक जीवन की चेतन और अचेतन गतिशीलता की खोज की जाती है (J. F Brown, 1940)। (2) दूसरे स्थान पर मनोविश्लेषण एक प्रकार की मनोचिकित्सा (Psychotherapy) है जिसके माध्यम से मनःस्ताप, मनोविक्षिप्तता या मनोविकृत रोगियों का पुनर्निर्माण या उपचार इस प्रकार किया जाता है कि वह जीवन की समस्याओं के प्रति बेहतर और सुखी समायोजन कर सके।

(3) तीसरे स्थान पर मनोविज्ञान में मनोविश्लेषण एक सम्प्रदाय (School) है। मनोविश्लेषण को चाहे सम्प्रदाय के रूप में लिया जाये, चाहे चिकित्सा पद्धति अथवा प्रविधि के रूप में लिया जाये। इन सभी क्षेत्रों में फ्रायड का प्रारम्भिक और प्रमुख योगदान है। मनोविश्लेषण चिकित्सा पद्धति के जनक है तथा मनोविश्लेषण सम्प्रदाय के संस्थापक हैं।

फ्रायड के सम्बन्ध में विसकाफ (L. J. Bischof, 1964) ने लिखा है कि, "यद्यपि, फ्रायड ने अपने प्रतिभावान लेखों में किसी भी सिद्धान्त का स्पष्ट रूप से प्रतिपादन नहीं किया है, किन्तु आलोचक उसके साहित्य से कुछ ऐसे मौलिक प्रत्ययों को चुन पाता है, जो उसके सिद्धान्त की व्याख्या करते हैं तथा मानव व्यवहार के संगठनात्मक पक्षों को व्यक्त करते हैं।" प्रस्तुत अध्याय में फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धान्त के अन्तर्गत व्यक्तित्व संरचना, व्यक्तित्व को गतिकी और व्यक्तित्व विकास का वर्णन किया गया है। फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद के अन्तर्गत वर्णित सभी विषय सामग्री आती है।

(1) मन का सिद्धान्त और व्यक्तित्व संरचना (Theory of Mind & Personality Structure)

मस्तिष्क के विभिन्न अंगों की प्रक्रिया का केन्द्र मन है। फ्रायड का मन का सिद्धान्त एक प्रकार का परिकल्पनात्मक प्रत्यय (Hypothetical Concept) है। फ्रायड ने मन के मुख्यतः दो भाग बताये हैं

(1) मन का गत्यात्मक पक्ष (Dynamic Aspect of Mind)—मन के इस पक्ष के अन्तर्गत इदं (Id), अहं (Ego) तथा पराअहं (Superega) तीन अंग या संघटक (Components) हैं। 

(2) मन का स्थलाकृतिक पक्ष (Topological Aspect of Mind)-मन के इस पक्ष के अन्तर्गत चेतन (Conscious), अर्धचेतन (Preconscious) तथा अचेतन (Unconscious) तीन अंग या भाग हैं। मन का स्थलाकृतिक पक्ष और मानसिक क्रिया के स्तर (Topologcal Aspect of Mind and Levels of Mental Activity)

फ्रायड ने मन की तुलना आइसबर्ग (Iceberg) समुद्र में तैरती हुई बर्फ को पहाड़ से की है जिसका 9/10 भाग पानी के अन्दर और 1/10 भाग पानी के बाहर रहता है। पानी के अन्दर वाला भाग अचेतन, पानी के बाहर वाला भाग चेतन तथा जो भाग पानी की ऊपरी सतह से स्पर्श करता हुआ होता है, वह अर्धचेतन कहलाता है। फ्रायड का विचार है कि व्यक्ति की विभिन्न मानसिक क्रियाएँ इन्हीं तीन स्तरों पर होती हैं

1. चेतन (Conscious)-फायड के अनुसार, "चेतन मन, मन का वह भाग है जिसका सम्बन्ध तुरन्त ज्ञान से होता है।" वास्तव में चेतन का अर्थ ज्ञान से है। यदि कोई व्यक्ति लिख रहा है तो उसे लिखते की चेतना है। यदि किसी वस्तु को देख रहा है तो उसे देखने की चेतना है। व्यक्ति जिन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के प्रति जागरूक होता है, वह चेतन स्तर पर घटित होती है। चेतन स्तर पर घटित होने वाली सभी प्रकार की क्रियाओं और प्रक्रियाओं की जानकारी या चेतना व्यक्ति को रहती है। यद्यपि चेतना में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं परन्तु चेतना में निरन्तरता होती है अर्थात कभी लुप्त नहीं होती है।

2. अर्ध चेतन (Preconscious or Foreconscious)- फ्रायड के अनुसार, "यह मन का वह भाग है जिसका सम्बन्ध ऐसी विषय सामग्री से होता है जिसे व्यक्ति इच्छानुसार कभी भी याद कर सकता है। मन के इस भाग में वह विषय सामग्री होती है जिसका प्रत्याहान करने से व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है। व्यक्ति जिन अनुभवों को याद करके अपने चेतन मन में लाता है, वह अनुभव मन के इसी भाग में पड़े रहते हैं। सीखने और आदतों से सम्बन्धित सामग्री मन के इसी भाग में एकत्रित रहती है।

3. अचेतन (Unconscious)-फ्रायड के अनुसार, "अचेतन मन, मन का वह भाग है जिसमें ऐसी विषय-सामग्री होती है जिसे व्यक्ति इच्छानुसार याद करके चेतना में लाना चाहे तो भी नहीं ला सकता है। अचेतन मन में वह विचार, इच्छाएँ और संवेग आदि होते हैं जो 12 दमित होते हैं। मन का यह भाग भी चेतन और अर्ध चेतन की भाँति इस प्रकार का स्टोर हाउस है। इस मन की विषय-सामग्री निष्क्रिय न होकर सक्रिय होती है। यह चेतन मन में आने का प्रयास करती रहती है। कई बार यह रूप बदलकर भी चेतन मन में प्रवेश करती है। अचेतन मन के सम्बन्ध में बाउन (1940) ने लिखा है कि

We all have experienced material which we cannot recall at will, but which may occur to us automatically and which we know is present in our minds through hypnosis and other experimental procedures.

अचेतन मन का प्रत्यय सम्भवतः लिवनिट्ज (Leibnity, 1714) ने प्रस्तुत किया, परन्तु इस प्रत्यय की सर्वप्रथम वैज्ञानिक व्याख्या करने का श्रेय फ्रायड को है। अचेतन मन पर ही फ्रायड का मनोविज्ञान, विशेष रूप से उसकी चिकित्सा पद्धति मनोविश्लेषण पर आधारित है। फ्रायड का विचार है कि जिस प्रकार आइसबर्ग से टकराकर बड़े-बड़े जहाज टूट जाते हैं, उसी प्रकार अचेतन की क्रियाएं यद्यपि दिखायी नहीं देती हैं फिर भी व्यक्तित्व को नष्ट कर सकती हैं या विकृतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं। फ्रायड का यह विचार है कि अचेतन मन कामशक्ति (Libido) का स्टोर हाउस है। इगो और सुपरइगो द्वारा सेन्सर की हुई और दमित की हुई इच्छाएँ, विचार, भावनाएँ, प्रेरणाएँ और संवेग आदि इस मन की विषय-सामग्री होते हैं। जो सुखवाद सिद्धान्त से संचालित होता है, वह इस मन का स्टोरकीपर होता है। फ्रायड ने दैनिक जीवन की भूलों, स्वप्न और अभिप्रेरणाओं आदि की व्याख्या अचेतन मन की सामग्री के आधार पर की है। अचेतन मन की फ्रायड के अनुसार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार से है

(1) अचेतन मन की विषय-सामग्री की प्रकृति गत्यात्मक होती है।

(2) अचेतन मन की विषय-सामग्री मानव व्यवहार का महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती है।

(3) अचेतन मन की विषय-सामग्री की अभिव्यक्ति स्वप्नों और मानसिक रोगों में होती है। 

(4) अचेतन द्वारा सभी अतृप्त इच्छाओं को स्वीकार कर लिया जाता है। 

(5) अचेतन में निहित सामग्री की अभिव्यक्ति क्रियाओं द्वारा होती है, शब्दों द्वारा नहीं होती है।

(6) अचेतन में तर्क और नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता है। 

(7) अचेतन की सामग्री सुखवाद सिद्धान्त पर आधारित होती है।

(8) अचेतन मन की सामग्री का स्वरूप लैंगिक (Sexual) होता है।

मन के गत्यात्मक पक्ष से सम्बन्ध-मन के गत्यात्मक पक्ष-इड, इगो और सुपरडगो का चेतन, अर्ध-चेतन और अचेतन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह पहले बताया जा चुका है कि चेतन, अचेतन और अर्थ-चेतन मन एक प्रकार के स्टोर हाउस हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के विचार, इच्छाएं, प्रेरणाएं, संवेग और भावनाएं आदि होती हैं। इड, इगो और सुपरइगो के लिए यह स्टोर हाउस कार्यक्षेत्र हैं। इड का कार्यक्षेत्र अचेतन है। इगो मुख्यतः चेतन स्तर पर कार्य करता है। साथ-ही-साथ इसका कुछ कार्य अर्ध-चेतन और अचेतन स्तर पर भी होता है। इड की भाँति सुपरइगो भी चेतन, अर्ध-चेतन और अचेतन स्तर पर कार्य करता है। मन का गत्यात्मक पक्ष और व्यक्तित्व संरचना (Dynamic Aspect of Mind & Personality Structure)

फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व की संरचना इड, इगो और सुपरइगो से होती है। हमेशा व्यक्ति का व्यवहार इन तीन अवस्थाओं (Systems) इड, इगो और सुपरइगो की अन्तक्रियाओं का परिणाम है (Behaviour is nearly always the product of an interactions among these three systems) । हाल और लिण्डजे (G. H. Hall & Lindzy, 1972) के अनुसार इन तीन व्यवस्थाओं में से कोई भी एक व्यवस्था पृथक् रूप से कार्य नहीं करती है। इन तीनों व्यवस्थाओं की अन्तक्रिया इतनी घनिष्ठ होती है कि किसी एक व्यवस्था के मानव जीवन पर प्रभाव का अलग से मूल्यांकन करना कठिन होता है। ब्राउन (1940) ने लिखा है कि

"Freud was the first modern psychologist to attempt a scientific description of the parts of the self or personality and to relate these to both normal and pathologic behaviour. He speak the normal adult as being composed of the Id, Ego and Superego". 

व्यक्तित्व की संरचना समझने के लिए आवश्यक है कि इड, इगो तथा सुपरइगो का सविस्तार अध्ययन किया जाय।

(A) इदम् (ld)

हॉल और लिण्डजे (1972) के अनुसार इड व्यक्तित्व का अत्यन्त अस्पष्ट अगम्य और अव्यवस्थित भाव है (The Id is the obscure, inaccessible and unorganized part of personality) | फ्रायड के अनुसार इड मानसिक जगत या आन्तरिक जगत का प्रतिनिधित्व करता है। इसी कारण इड को फ्रायड ने वास्तविक मानसिक सत्यता ( True Psychic Reality) कहा है। इसका बाह्य जगत की वास्तविकता से सीधा सम्बन्ध न होकर इड के माध्यम से होता है। इगो (और सुपरडगो) के विकास का आधार इड ही है। इड सुखवाद सिद्धान्त से संचालित होता है।

इड की उत्पत्ति (Origin of Id)

जन्म के समय शरीर की संरचना में जो कुछ भी निहित होता है, वह पूर्णतः इड होता है। दूसरे शब्दों में जन्म के समय मानव शिशु का मन पूर्ण रूप से इड है, अतः इड जन्मजात और वंशानुगत है। इसे फ्रायड ने असंख्य पूर्वजों के स्मृति अवशेषों का भण्डार माना है।

इड की विषय-सामग्री (Contents of the Id) 

तात्कालिक सन्तुष्टि की इच्छाएँ और विचार ही इड की प्रमुख विषय सामग्री है। इड की उपर्युक्त इच्छाओं और विचारों का सम्बन्ध आत्मगत वास्तविकता (Subjective Reality) से होता है। वातावरण को वास्तविकता से इड का कोई भी प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। हॉल और लिडने (1972) के अनुसार- "इड की विषय-सामग्री अनश्वर (Immortal) है क्योंकि वह सत्यगत प्रभावों से मुक्त है। इड तो न कुछ भूलता है और न ही इसमें कुछ भूतकालीन होता है।" इड का नैतिकता, तार्किकता, समय, स्थान और मूल्यों आदि से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। इड व्यक्तित्व का अपेक्षाकृत अधिक चलायमान पक्ष है।

इड के कार्य (Functions of the Id) 

इड का मुख्य कार्य शारीरिक इच्छाओं की सन्तुष्टि है। इड किसी भी प्रकार के तनाव से तात्कालिक छुटकारा पाना चाहता है। तात्कालिक तनाव-निवारण को ही सुखवाद नियम ( Pleasure Principle) कहा गया है। दूसरे शब्दों में इड अपने उद्देश्यों की पूर्ति सुखवाद नियम के आधार पर करता है। सुख की प्राप्ति और दुःख के निवारण हेतु इड के दो प्रकार के कार्य है

(1) सहज क्रियाएँ (Reflex Actions)- सहज क्रियाएँ जन्मजात होती हैं तथा स्वचालित भी होती हैं, उदाहरण के लिए छोकना और पलक झपकना आदि। सभी व्यक्ति सहज क्रियाओं की पूर्ति के बाद सन्तोष का अनुभव करते हैं।

(ii) प्राथमिक क्रियाएँ (Primary Processes) तनाव दूर करने हेतु प्राथमिक प्रक्रियाएँ व्यक्ति के सामने पदार्थ को प्रतिमा निर्मित करती हैं, उदाहरण के लिए एक प्यासे व्यक्ति के सामने पानी की प्रतिमा प्रस्तुत कर उसको प्यास को सन्तुष्टि करना। यहाँ प्रतिमा उपस्थित करना प्राथमिक प्रक्रिया का कार्य है। प्राथमिक प्रक्रियाएँ सभी इच्छित वस्तुओं की प्रतिमाएँ उपस्थित कर व्यक्ति को क्षणिक सन्तुष्टि देती हैं। इस प्रकार इच्छित वस्तु की प्रतिमा के द्वारा सन्तुष्टि इच्छापूर्ति (Wish Fulfilment) कहलाता है।

इच्छापूर्ति एक प्रकार का विभ्रमात्मक (Hallucinatory) अनुभव है। प्यासा व्यक्ति प्यास की प्रतिमा से केवल क्षणिक सन्तुष्टि प्राप्त करता है। स्थायी सन्तुष्टि व्यक्ति Secondary Process द्वारा प्राप्त करता है। इड का एकमात्र मनोवैज्ञानिक कार्य इच्छा उत्पन्न करना है। (The sole psychological function with which the Id is endowed is that of generating wishes.-Hall & Lindzy, 1972) |

(B) अहं (Ego)

फ्रायड का इगो से तात्पर्य आत्म (Self) या चेतन बुद्धि (Conscious Intelligence) है। इगो का सम्बन्ध, एक ओर बाह्य वास्तविकता से होता है तथा दूसरी ओर इड से होता है। यह व्यक्ति की इच्छाओं की सन्तुष्टि सामाजिक और भौतिक वास्तविकता के सन्दर्भ में करता है। यह इड की इच्छाओं और भौतिक जगत की वास्तविकता के मध्य समायोजनकर्ता का कार्य करता है। (It is the adjustor between the wishes of the Id and the demands of physical reality.- J. E. Brown. 1940) । इगो, इड और सुपरइगो के मध्य संयोजनकर्ता का कार्य करता है। 

इगो की उत्पत्ति (Origin of Ego )

शिशु की आयु बढ़ने के साथ-साथ वह वातावरण की वास्तविकताओं की ओर उन्मुख होने लगता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें मेरा और मुझे जैसे प्रत्ययों का अर्थ स्पष्ट होने लगता है। धीरे-धीरे वह समझने लगता है कि कौन-सी वस्तुएँ उसकी हैं और कौन-सी अन्य लोगों की हैं। इगो इड का ही एक विशिष्ट अंश है जो बाह्य वातावरण के प्रभाव के कारण विकसित होता है। चूंकि इड वंशानुगत होता है। अतः वंशानुगत पदार्थों पर वातावरण के प्रभावों के परिणामस्वरूप इगो का विकास होता है। 

इगो और इड में अन्तर और सम्बन्ध (Distinction and Relation between Id & Ego)

इड का सम्बन्ध केवल व्यक्तिगत (Subjective) वास्तविकता से होता है जबकि इगो मन में और बाह्य जगत में उपस्थित वस्तुओं में अन्तर करता है (The Id knows on the subjective reality of the mind. Ego distinguishes between things in the mind in the external world)। दूसरा अन्तर यह है कि इगो को इड से ही शक्ति प्राप्त होती है। इगो इड का ही एक विकसित रूप है, अतः इगो और इड में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इगो इड से ही अपनी शक्ति प्रदान करता है क्योंकि उसमें अपनी कोई शक्ति नहीं होती हैं। इगो का उद्देश्य इड इच्छाओं की पूर्ति करना है, बाधा उपस्थित करना नहीं है। पाठकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि इगो का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। यह व्यक्तित्व का केन्द्र है जो इड और बाह्य वातावरण के मध्य तथा इड और सुपरइगो के मध्य संयोजन का कार्य करता है। 

इगो की विषय-सामग्री (Contents of the Ego) बाह्य वातावरण का एकत्रित ज्ञान ही इगो की विषय-सामग्री है।

इगो के कार्य (Functions of the Ego) इगो तर्कसंगत (Logical) होता है तथा इगो दिक्-काल (Space-Time) के सम्बन्ध को जानता है। अतः इसका मुख्य कार्य बाह्य वातावरण के खतरों से जीवन की रक्षा करना है। यह अपने उद्देश्यों की पूर्ति वास्तविकता के नियम (Reality Principle) के आधार पर करता है। यह पहले बताया जा चुका है कि आवश्यकताओं को वास्तविक पूर्ति से सम्बन्धित प्रक्रिया द्वितीयक प्रक्रिया (Secondary Process) जो इड द्वारा सम्पादित होती है। यह सुख के नियम ( Pleasure Principle) या तात्कालिक तृप्ति का विरोधी नहीं है बल्कि उपयुक्त परिस्थिति के आते ही यह तात्कालिक तृप्ति में सहायता करता है। चूंकि यह व्यक्तित्व का बौद्धिक पक्ष है अतः यह तात्कालिक तृप्ति के लिए उपर्युक्त परिस्थिति को खोजने या उत्पन्न करने का कार्य भी करता है। संक्षेप में, इगो के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित प्रकार से हैं

(1) पोषण सम्बन्धी शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति करना 

(2) शरीर की सुरक्षा की आवश्यकता की पूर्ति करना।

(3) बाह्य वातावरण की वास्तविकताओं के अनुसार इड के आवेशों को अभिव्यक्त

(4) इड और सुपर इगो की विरोधी इच्छाओं से समायोजन को स्थापित करना। 

(5) नींद की अवस्था में भी यह स्वप्नों पर सेन्सरशिप बनाये रखता है।

(6) बाधा या चिन्ता के उपस्थित होने पर व्यक्तित्व की उपयुक्तता की रक्षा करना है। कई बार इस प्रकार की रक्षा इगो मानसिक मनोरचनाओं Mechanisms) की सहायता से करता है।

(C) सुपरइगो (Superego)

व्यक्तित्व का यह अंश सबसे बाद में विकसित होता है। यह व्यक्तित्व का नैतिक पक्ष है। यह वह मुख्य शक्ति है जो व्यक्ति का समाजीकरण करती है। बिस्काफ (L. J. Bischof, 1964) ने फ्रायड के विचारों को स्पष्ट करते हुए सुपरइगो के सम्बन्ध में लिखा है कि

The superego is the ethical-moral arm of the personality. It makes the decisions whether an activity is good or bad according to the standards of society which it accepts. Social laws mean nothing to it unless it has accepted them and internalized them. 

सुपरइगो की उत्पत्ति (Origin of Superego)

बालक की आयु जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे उसका समाजीकरण होता जाता है। धीरे-धीरे वह भले-बुरे में अन्तर समझने लग जाता है। इस समाजीकरण प्रक्रिया में ही बाल्यावस्था में सुपरइगो का विकास इगो से होता है। संक्षेप में, सुपरइगो इगो का ही एक विशिष्ट विकसित रूप है। सुपरइगो के विकास में तादात्म्य (Identification) और अन्तःश्चेपण (Introjection) की मानसिक मनोरचनाएँ सहायक होती हैं। सुपरइगो के दो पक्ष है—(1) आदर्श अहं (Ego Ideal), (2) अन्तरात्मा (Conscience)। आदर्श अहं सुपरइगो का घनात्मक पक्ष है जिसमें समाज और संरक्षकों से सीखी गयी बातें या गुण सम्मिलित होते हैं। आदर्श अहं द्वारा व्यक्ति यह सीखता है कि समाज में क्या उचित है ? अन्तरात्मा सुपरइगो का ऋणात्मक पक्ष है जिसमें संरक्षक और समाज जिन बातों को बुरा समझते हैं, वह अवगुण सम्मिलित होते हैं। अन्तरात्मा द्वारा व्यक्ति यह सीखता है कि समाज में क्या अनुचित है, उसके संरक्षक किन बातों को अनुचित समझते हैं आदि। जब कोई व्यक्ति समाज के आदर्शों और मूल्यों के प्रतिकूल कोई कार्य करता है तो अन्तरात्मा के कारण उसमें चिन्ता और अपराध भावना (Guilt Feeling) उतन्न हो सकती है। 

सुपरइगो के कार्य (Functions of Superego)—वह इगो का ही विकसित किन्तु विभेदित रूप है जो सामाजिकता और नैतिकता का प्रतिनिधित्व करता है। अतः इसके कार्य इड और इगो की अपेक्षा भिन्न हैं। यह इगो के उन सभी कार्यों पर रोक लगाती है जो सामाजिक और नैतिक नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, यह मूलप्रवृत्तियों की सन्तुष्टि को रोकती है। सुपरहगो का इगो के प्रति कार्य और व्यवहार लगभग वैसा ही होता है जैसा एक बच्चे के प्रति माता-पिता का व्यवहार होता है। संक्षेप में सुपरइगों के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं

(1) इड के अनैतिक, सामाजिक और कामुक आवेगों पर रोक लगाना । 

(2) इगो के आवेगों को नैतिक और सामाजिक लक्ष्यों की ओर ले जाने का प्रयास करना।

(3) पूर्ण सामाजिक और आदर्श प्राणी बनाने हेतु प्रयास करना । 

इड इगो और सुपरइगो का पारस्परिक सम्वन्ध (Mutual Relation of Id, Ego and Superego)

यह पहले बताया जा चुका है कि इड, इगो और सुपरङगो से व्यक्तित्व की संरचना होती है। यह तीनों ही इकाइयाँ गतिशील हैं। इन तीनों के सम्बन्ध में ब्राउन (1940) ने लिखा है, -The Id is primary biologically conditioned, the Ego primarily conditioned by the physical environment but the superego is primarily sociologically or culturally conditioned. इड सुख के नियम ( Pleasure Principle) से इगो वकता नियम (Reality Principle) से तथा सुपरइगो निरपेक्ष नियोग (Categorical Imperative) नियम से नियमित होती है।

सामान्य व्यक्तित्व के इन तीनों ही अगों से पर्याप्त मात्रा में सामंजस्य पाया जाता है। इन तीनों इकाइयों में जितना ही पारस्परिक विरोध या खींचातानी होती है, व्यक्ति का व्यक्तित्व उतना ही अधिक असामान्य होता है और उसके व्यक्तित्व का विघटन उतना ही अधिक होता है। सामान्य व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है कि इन तीनों इकाइयों में सामंजस्य और समन्वय बना रहे। जब इन तीनों इकाइयों में से कोई एक अन्य दो की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हो जाती है तो समन्वय और सामजस्य बिगड़ जाता है और विघटन प्रारम्भ हो जाता है। इगो व्यक्तित्व का केन्द्रक (Nucleus) है। यह इड सुपरइगो और वातावरण की वास्तविकताओं के मध्य समन्वय और सामंजस्य बनाकर क्रिया या व्यवहार करता है। 

इड, सुपरइगो और वातावरण की वास्तविकताओं के मध्य इगो जितना ही अधिक सामंजस्य करने की समझ होगी व्यक्ति का व्यक्तित्व उतना ही अधिक स्थायी होगा। फ्रायड के अनुसार समस्त व्यक्तित्व एक इकाई के रूप में कार्य करता है। हॉल और लिंडजे (1972) ने फ्रायड के विचारों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि इड, इगो और सुपरइगो को एक-दूसरे से पृथक करने के बाद भी उन्हें आपस में एक-दूसरे में एकरस (Merge) होते हुए समझना चाहिए (Affer separating them, “We must allow what has been separated to merge again.")

इड, इगो और सुपरइगो के आवेगों को स्पष्ट करने हेतु निम्नलिखित उदाहरण दिया जा सकता है-एक सुनसान सड़क पर एक सुन्दर नवयुवती को देखकर एक नवयुवक के मन में यह विचार आ सकता है कि, "मैं इसे छेडूं, इसका चुम्बन करूं, फिर और कार्यों के लिए भी राजी कर लूँ" इस प्रकार की विचारधारा इड आवेग की अभिव्यक्ति करती है। कुछ ही समय में उस नवयुवक के मन में यह भी विचारधारा उत्पन्न हो सकती है कि नवयुवती को यहाँ छेड़ना और चुम्बन लेना आदि ठीक नहीं है। यदि किसी ने देख लिया तो पिटाई हो जायेगी या पुलिस के हवाले हो जाऊंगा। यह नवयुवती थोड़ी दूर और आगे जाए तो वहाँ कोई नहीं देखेगा, वहाँ इसको छेड़ना अधिक उपयुक्त है। इस प्रकार की विचारधारा वास्तविकता से सम्बन्धित है जिसे इगो की अभिव्यक्ति कह सकते हैं। इसी प्रकार निम्न विचारधारा सुपरइगो का आवेग है-"कुछ समय बाद नवयुवक में यह भी विचार आ सकता है कि किसी लड़की को छेड़ना या चुम्बन लेना बुरी बात है। समाज में इस प्रकार का व्यवहार करना बुरा समझा जाता है। "

जब व्यक्ति की इड प्रबल होती है तो व्यक्ति सुखवादी, स्वार्थी और अनियन्त्रित होता है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति में इगो अधिक प्रबल होती है, उस व्यक्ति में, "मैं" की अधिकता होती है। जिस व्यक्ति की सुपरइगो प्रबल होती है, वह व्यक्ति आदर्शवादी होता है। उसमें भले-बुरे का विचार अधिक होता है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि Personality is the function of these three segments as a whole rather than as three separate segments.


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