With a passion for understanding how the human mind works, I use my expertise as a Indian psychologist to help individuals nurture and develop their mental abilities to realize lifelong dreams. I am Dr Manju Antil working as a Counseling Psychologist and Psychotherapist at Wellnessnetic Care, will be your host in this journey. I will gonna share psychology-related articles, news and stories, which will gonna help you to lead your life more effectively. So are you excited? Let go

असामान्य व्यवहार का वर्गीकरण । CLASSIFICATION OF ABNORMAL BEHAVIOUR


असामान्य व्यवहार का उचित एवं सर्वमान्य वर्गीकरण करना बहुत ही जटिल काम है, परन्तु फिर भी कई विद्वानों ने इसके वर्गीकरण किये। अतः असामान्य व्यवहार के वर्गीकरण जो विभिन्न विद्वानों द्वारा किए गए हैं, वे निम्न प्रकार है

(1) कैमरान का वर्गीकरण- अगर हमें असामान्य व्यवहार के वर्गीकरण को समझना है तो इसके लिए यह आवश्यक है कि सबसे पहले हम कैमरान द्वारा दी गई वर्गीकरण की विषय-वस्तु को जान लें। कैमरान ने असामान्य व्यवहार के सम्बन्ध में कहा है कि " असामान्य विज्ञान बहुआयामी सातत्य है जिसे हम समझने के लिए समूह में विभाजित करते हैं। " असामान्य मनोविज्ञान को कैमरान ने तीन मुख्य वर्गों में बाँटा जिसका स्पष्टीकरण निम्नवत् है

(i) मनःस्ताप (Neuroses) - इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नलिखित मानसिक रोग आते हैं

 (a) चिन्ता प्रतिक्रियाएँ (Anxiety Reactions)

(b) रूपान्तरित प्रतिक्रियाएँ (Conversion Reactions)

(c) भय प्रतिक्रियाएँ (Phobic Reactions)

(d) मन:स्ताप-विषाद प्रतिक्रियाएँ (Neurotic-Depressive Reactions)

(e) मनोविच्छेदी प्रतिक्रियाएँ (Dissociative Reactions)

(f) मनोग्रस्तता-बाध्यता प्रतिक्रियाएँ (Neurotic-Depressive Reactions)

(ii) मनोविक्षिप्तता (Psychoses) - इस वर्ग में निम्नलिखित मानसिक रोग आते हैं

(a) सम्भ्रान्ति प्रतिक्रियाएँ (Paranoid Reactions)

(b) मनोविदलता सम्बन्धी प्रतिक्रियाएँ (Schizophrenic Reactions) 

(c) मनोविक्षिप्त विषाद प्रतिक्रियाएँ (Psychotic-Depressive Reactions)

(d) प्रत्यावर्तनकालीन मनोविक्षिप्त प्रतिक्रियाएँ (Involutional Psychotic Reactions)

(e) उत्साह प्रतिक्रियाएँ या उत्साह-विषाद चक्र (Manic or Manic-Depressive Reactions) 

(iii) कुछ अन्य विकृतियाँ (Other Major Disorders) - इस वर्ग में कुछ निम्नांकित मानसिक असामान्यताएँ आती हैं

(a) व्यक्तित्व विकृतियाँ (Personality Disorders)

(b) मनोदैहिक विकृतियाँ (Psychosomatic Disorders) (c) चारित्रिक विकृतियाँ (Character Disorders)।

(2) ब्राउन का वर्गीकरण (Brown's Classification)–ब्राउन ने असामान्य व्यवहार के निम्न वर्गीकरण स्पष्ट किये

(i) चरित्र विकार (Character Disorder) 

(ii) आंगिक मनोविक्षिप्तता (Organic Psychoses)

(iii) मन:स्ताप (Neuroses)

(iv) कामुकता सम्बन्धी असमानताएँ (Abnormalities of Sexual Behaviours)

(v) प्रकार्यात्मक मनोविक्षिप्तता (Functional Psychoses)।

(3) अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन का वर्गीकरण (Classification of American Psychiatric Association) - यह वर्गीकरण DSM-II के नाम से प्रचलित है। सबसे पहले इस वर्गीकरण को 1952 में APA के सामने रखा गया था, फिर इसमें कुछ फेरबदल होने के बाद इसको दोबारा 1968 में प्रस्तुत किया गया। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत मानसिक असमानताओं को दस वर्गों में बाँटा गया जिसका विवरण निम्न है

(i) मानसिक मन्दन (Mental Retardation)

(ii) आंगिक मस्तिष्क संलक्षण (Organic Brain Syndromes) 

(iii) प्रकार्यात्मक मनोविक्षिप्तता (Functional Psychoses) - इस वर्ग में निम्न रोग आते हैं

(a) मनोविदलता (Schizophrenia)

(b) प्रत्यावर्तनकालीन उदासीनता (Involutional Melancholia)

(c) उत्साह - विषाद मनोविक्षिप्तता (Manic-Depressive Psychoses)

(d) सम्भ्रान्तिवत् अवस्थाएँ (Paranoid Status)

(iv) मन:स्ताप (Neuroses) - इस वर्ग में निम्न रोग आते हैं

(a) हिस्टीरिया मनःस्ताप (Hysteria Neuroses)

(b) न्यूरास्थैनिक मनःस्ताप (Neurasthanic Neuroses)

(c) हाइपो-कोर्डियल मनःस्ताप (Hypo-chordial Neuroses)

(d) फोबिक मनःस्ताप (Phobic Neuroses)

(e) हीन अभिव्यक्ति सम्बन्धी मनःस्ताप (Depersonalization Neuroses)

(f) चिन्ता मनःस्ताप (Anxiety Neuroses )

 (g) पीड़ाजनक मन:स्ताप (Obsessive Compulsive Neuroses)

(v) व्यक्तित्व विकृतियाँ तथा अन्य मनोविकृतियाँ (Personality Disorders)– इस वर्ग में अग्रांकित रोग आते हैं

(a) कामुक विचलन (Sexual Deviations)

(b) नशा निर्भरता (Drug Dependence)

(c) व्यक्तित्व विकृतियाँ (Personality Disorders)

(d) मदिरापन (Alcoholism)

(vi) मनो-शारीरिक क्रियात्मक विकृतियाँ (Psycho-physiological Disorders ) – 

(a) मनोशारीरिक आन्तो सम्बन्धी विकृतियाँ (Psycho-physiological Gastrountestinal Disorders)

(b) मनोशारीरिक एन्डोक्राइन विकृतियाँ (Psycho-physiologycal Endocrine Disorders) 

(c) मनोशारीरिक त्वचा विकृतियाँ (Psycho-physiological Disorders)

(d) मानसिक-शारीरिक मूत्र सम्बन्धी विकृतियाँ (Psycho-physiological Gentourinary Disorders)

(e) मनोशारीरिक श्वांस क्रियात्मक विकृतियाँ (Psycho-physiologic Respiratory)

(vii) विशिष्ट लक्षण (Special Symptoms)-मनोगतिकीय सम्बन्धी विकृतियाँ भी इस वर्ग में आती हैं।

(viii) क्षणिक स्थिर रहने वाले रोग (Transient Situational Disorders) - समस्त संवेगात्मक क्षणिक से विघ्नों को इस वर्ग में रखा गया है।

(ix) बाल्य तथा किशोरावस्था की मनोविकृतियाँ (Behaviour Disorder of Childhood and Adolescence) - इस वर्ग के अन्तर्गत बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था से सम्बन्धित मनोविकृतियों को रखा जाता है।

(x) मनोरोगों की अस्पष्टावस्थाएँ (Conditions without Manifest Psychiatric) - जो विकृतियाँ - वैवाहिक, सामाजिक और व्यावहारिक समायोजन के अभाव के कारण होती हैं, वह इस वर्ग में आती हैं। इस तरह से एक बात तो स्पष्ट है कि असामान्य व्यवहार का वर्गीकरण करना एक बहुत जटिल समस्या है। अतः इन वर्गीकरणों से यह बात साफ है कि किसी भी लक्षण के आधार पर रोगों का केवल पता लगाया जा सकता है कि कौन-सा लक्षण किस रोग का है क्योंकि कभी-कभी यह पाया जाता है कि लक्षण और उनके कारण भिन्न हैं।











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असामान्य मनोविज्ञान के विकास का इतिहास (HISTORY OF DEVELOPMENT OF ABNORMAL PSYCHOLOGY)



आदिकाल (Ancient Time)
असामान्य व्यवहार के इतिहास के आधार पर यह पता चलता है कि इसका सूत्रपात पाषाण युग से ही हुआ है। पाषाण युग में मानव असामान्य व्यवहार के लिये दो तरह की विचारधाराएँ पीन रखते थे। उस समय के मानव में एक विचारधारा यह थी कि कोई भी व्यक्ति असामान्य व्यवहार तब करता है। जब लये उसके शरीर में भूत-प्रेत आदि प्रविष्ट हो जाते हैं तथा दूसरी विचारधारा के अनुसार-असामान्य व्यवहार वाले लोगों को ठीक करने के लिये चिकित्सा पद्धतियाँ थीं। असामान्य व्यवहार की प्राचीन एवं ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि इसके दोनों पहलुओं पर विचार किया जाये।

रूढ़िवादी विचारधारा (Orthodox View)-प्रेतात्मा का तात्पर्य मनुष्य की मृत्यु होने के बाद वायुमण्डल क में रहने वाली उसकी अदृश्य आत्मा से है। माना जाता है कि प्रेतात्मा दो प्रकार की होती है। पहली शुभ प्रेतात्मा और दूसरी अशुभ प्रेतात्मा। यह दोनों ही प्रेतात्माएँ देवों के निर्देशों के अनुसार काम करती थीं। जब देवता किसी  व्यक्ति से प्रसन्न होते थे तो वह उसके पास शुभ प्रेतात्माओं को भेज देते थे और जब किसी व्यक्ति से गुस्सा हो जाते थे तो उसके पास अशुभ प्रेतात्माओं को भेज देते थे। अशुभ प्रेतात्माएँ व्यक्ति के शरीर में घुसकर उसे अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित कर देती हैं।

प्राचीन कालीन चिकित्सा पद्धति (Ancient Treatment Method)-मानसिक रोगों के उपचारके  लिये प्राचीन काल में कई प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों को अपनाया गया जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-

प्लेटो की विचाघारा (429-347 B.C)- व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर प्लेटो ने सामान्य एवं असामान्य व्यक्तित्व में अन्तर बताया। प्लेटो की बात से प्रभावित होकर कालमैन ने अपने विचार व्यक्त करते हुये लिखा है कि, “प्लेटो की विचारधारा में असामान्यता सम्बन्धी आधुनिक प्रभाव के रहते हुये भी वह तत्कालीन र्अन्धविश्वास एवं अज्ञानता से पूरी तरह ऊपर नहीं उठ सका है। यही वजह है कि प्लेटो ने मानसिक रोगों को आंशिक रूप से शारीरिक, नैतिक एवं आंशिक रूप से दैहिक समझा है।"

हिप्पोक्रेटीज की विचारधारा (460-377 B.C.)-हिप्पोक्रेटीज यूनान के एक महान दार्शनिक थे। न हिप्पोक्रेटीज को Father of Medicine के नाम से भी पुकारा जाता है। उनका मानना था कि मानसिक रोग सामान्यता प्राकृतिक कारणों से ही उत्पन्न होते हैं।

हिप्पोक्रेटीज ने तीन श्रेणियों में मानसिक रोगों को बाँटा-1. उन्माद, 2. विषाद रोग, 3. मस्तिष्क शोध।

 (1) उन्माद (Mania)--इस प्रकार के रोगी अनियन्त्रित उत्तेजना से पीड़ित रहते हैं। जो लोग इस रोग से ग्रसित होते हैं उनमें अत्यधिक सक्रियता एवं हिंसा देखने को मिलती है।

(2) विषाद रोग (Melancholia) - विषाद रोग में रोगी अवसाद की भावनाएँ पैदा होने लगती हैं। जिसके कारण रोगी अत्यधिक दुःखी, व्याकुल एवं उदास दिखाई पड़ता है।

(3) मस्तिष्क शोध (Pherenitis) - मस्तिष्क शोध के रोगियों में मस्तिष्क से सम्बन्धित विकार उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे-मिर्गी |

अरस्तु की विचारधारा (384-322 B.C.)-प्लेटो द्वारा प्रस्तुत किये गये मानसिक विकारों से अरस्तु सहमत नहीं थे। अरस्तु का मानना था कि मानव शरीर के चारों देह द्रव्यों में असन्तुलन होने से मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं।

मध्यकालीन असामान्य व्यवहार एवं उसका उपचार(TREATMENT OF ABNORMAL BEHAVIOUR IN MIDDLE AGE)

मध्यकाल (Middle Age) (200 A.D. 1500 A.D.)

मध्यकाल को अन्धकार का युग भी कहा जाता है। क्योंकि इस काल में वैज्ञानिक पाबन्दी होने के कारण स्वतन्त्र चिन्तन का प्रादुर्भाव नहीं हुआ। इस काल में प्रत्येक मानसिक रोग का कारण भूत-प्रेत आदि का प्रकोष ही समझा जाता था और इनके उपचार के लिये भी अधिकतर बस एक ही तरीका प्रयोग किया जाता था वो था जादू-टोना जिसके कारण इस काल को पागलपन की वृद्धि का युग भी कहा जाता है। मध्यकाल में सामान्यत: दो प्रकार के पागलपनों की वृद्धि हुई-(1) सामूहिक पागलपन, (2) जादू-टोना।

(1) सामूहिक पागलपन (Mass Madness) - सामूहिक रूप से नृत्य करना, उछलना, कूदना, हँसना, अपने शरीर के वस्त्र आदि फाड़ना जैसी क्रियाएँ सामूहिक पागलपन कहलाती है। इस प्रकार के पागलपन को भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। यूरोप एवं जर्मनी में इसे (Stvitus Dance) तथा इटली (Tarantism) के नाम से जाना जाता है। हिस्टीरिया नामक मानसिक रोग के लक्षणों से ही मिलते-जुलते सामूहिक पागलपन के लक्षण थे। सामूहिक पागलपन के प्रमाण 10वीं से 16वीं शताब्दी तक देखने को मिलते हैं।

(2) जादू-टोना (Witch-Craft) - मध्यकाल में भूत-प्रेत आदि को मानसिक रोगों का मुख्य कारण समझा जाता था और उनके उपचार के लिये चर्चों एवं मठों में, मन्दिरों आदि में जाकर पादरियों एवं पुजारियों से जादू-टोना करवाया जाता था। यहाँ पहले रोगियों का उपचार मानवीय आधारों पर किया जाता था। मानवीय उपचारों से अगर रोगी ठीक नहीं होता था तो जिसमें उसे अनेक प्रकार की चीजों जैसे-गर्म सलाखें उसके शरीर पर मारना, जंजीरों से बाँधना, मारना आदि से बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता था। इस तरह के कार्य करने के पीछे मनुष्यों का यह सोचना होता था कि भूत प्रेत इस व्यक्ति के अन्दर है वह डर कर इसके शरीर को छोड़ देंगे और वह व्यक्ति ठीक हो जायेगा।

वैज्ञानिक पुर्नजागरण का युग (THE AGE OF SCIENTIFIC RENAISSANCE) 

16वीं शताब्दी में मध्यकाल के अन्धविश्वास और अन्धी परम्पराओं का अन्त हुआ था तथा एक नयी वैज्ञानिक परम्परा का उदय हुआ था। इसलिये इस शताब्दी को पुर्नजागरण काल भी कहा जाता है। इस शताब्दी में यूरोप के कई वैज्ञानिकों ने मानिसक रोगों के मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज की तथा उसके उपचार के वैज्ञानिक ढंग भी बताये।

मानसिक रोगों की चिकित्सा की दशा में 18वीं शताब्दी में फिलिप, पिनेल, जन एस्कयूरल, विलियम ड्यूक, बेन्जामिन रश आदि विद्वानों के नाम प्रमुख हैं। इस युग में मुख्य रूप से दो दृष्टिकोण देखने को मिलते है—(1) दैहिक दृष्टिकोण, (2) मनोजात दृष्टिकोण

(1) दैहिक दृष्टिकोण (Somatic Point of View)- हॉलैण्ड, ग्रिजिगर, क्रेपलिन प्रमुख विद्वान थे। इन विद्वानों का मानना था कि मानसिक रोगों का मूल विकार है। क्रेपलिन का नाम इस सम्बन्ध में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने Pathology of Brain नामक अलग बाँटा। उनका मानना था कि असामान्य की श्रेणी में चारित्रिक दोष, मादक द्रव्य व्यसन भी आते हैं तथा इनकी चिकित्सा मनोवैज्ञानिक ढंग से की जानी चाहिये। कॉलमैन ने कहा सन् 1915 तक आंगिक दृष्टिकोण अपनी चरम सीमा पर था। कॉलमैन के दृष्टिकोण के बाद ही मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का शुभारम्भ हुआ।

(2) मनोजात दृष्टिकोण (Psychogenic Point of View)-मनोजात दृष्टिकोण के क्षेत्र में सबसे पहले ऐन्टन मेस्मर ने महत्वपूर्ण कार्य किया। मनोजात दृष्टिकोण के अनुसार मानसिक रोगी का कारण मनोवैज्ञानिक होता है। ऐन्टन मेस्मर ने मैक्सवेल द्वारा बनाए गये चुम्बकीय चिकित्सा सिद्धान्त के स्थान पर मेस्मेरिज्म चिकित्सा सिद्धान्त की स्थापना की। यह उपचार पद्धति इस सिद्धान्त पर आधारित की गई थी कि व्यक्ति के शरीर में उपस्थित रहने वाली चुम्बकीय मात्रा के क्रय होने पर मानसिक रोग होते हैं। मनोजात दृष्टिकोण के विकास में महत्वपूर्ण योगदान जेम्स ब्रेड, ली बाल आदि का है।

आधुनिक युग (Modern Age) - असामान्य मनोविज्ञान के आधुनिक युग का समय 1856 से 1939 तक माना जाता है तथा सिगमण्ड फ्रायड इसके जनक कहे जाते हैं। फ्रायड सामान्यतः एक न्यूरोफिजिशियन थे तथा वह कुछ अलग तरह के रोगियों से मिले तथा उनके प्रति आकर्षित हुये जो बिना किसी तरह की शारीरिक विकृति के शारीरिक रूप से बीमार थे। उनसे मिलकर फ्रायड ने उनके बारे अध्ययन शुरू किया। फ्रायड मनोविश्लेषणवाद के जन्मदाता हैं। उन्होंने इस सिद्धानत के आधार पर असामान्यता के गत्यात्मक पक्ष का अध्ययन किया तथा चिकित्सा हेतु Free Association Technique को प्रस्तुत किया।









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What is the Law of Vibration?

 

To begin, keep in mind that everything is made up of atoms, and each atom has its own unique vibration. As a result, all matter and energy are vibratory by nature. Solids, liquids, and gases are all various states of matter, as you were taught in school. The frequency of molecular vibrations determines what condition they are in and how they look to us.


Matching vibrations create reality as we know it. In other words, we must be vibrationally compatible with reality in order to comprehend it. Sound waves between 20 and 20,000 vibrations per second, for example, are only heard by the human ear. This isn't to say that other sound waves don't exist; it only means that humans can't hear them. When a canine whistle is blown, the frequency is above the human ear's vibratory range, thus it is not audible to us.


To receive or perceive the reality you want to have, you must be in energetic harmony with what you want. This means that our thoughts, emotions, words and actions must be consistent with what we want.

This can be illustrated by taking two tuning forks  calibrated at the same frequency. If you tap one of them to start vibrating, the second fork will  vibrate as well, leaving it intact. The vibration of the struck tuning fork is transferred to the intact tuning fork because they are tuned to the same frequency - they are in vibrational harmony. If they are not in vibrational harmony,  the vibration of the struck tuning fork will not be transmitted to the other.


To listen to a specific radio station, you must tune the receiver to  that station's frequency. That's the only way to hear it. If you tune in to a different frequency, you end up listening to a completely different station.

As soon as you vibrate with something, you begin to draw it into your reality. The best way to know what frequency you are on is through your emotions - your emotions are a true reflection of your energy.


Sometimes we can believe that we are in a positive state of mind or that we are doing good works, but deep down we know that we are not; We only pretend. If we pay attention to our emotions, we can see the true nature of our vibration and therefore what we are introducing into our lives. When we feel good, we think well and take positive action as a result. The law of vibration assumes that we can control our reality.

Change the way you think, feel, speak and act and you will start to change your world. To make an idea exist, or rather within your perception, you must adjust its vibrational frequency. The more 'real' or more solid


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मनोविज्ञान तथ्य जो आपको अवश्य जानना चाहिए| psychological facts! psychology fact! wellnessnetic care videos





Our brains assist us in interpreting the world, recognising everyone and everything, and learning new information; nevertheless, we have no idea how much of our brains work. Modern neuroscience and neuropsychology, on the other hand, have made great progress in describing how our minds affect our day-to-day activities. This is why a lot of people find psychology fascinating and thought-provoking. As a result, we've compiled a list of some of the most fascinating Psychology facts films for your viewing pleasure.




























































































































 

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