Dr. Manju Antil, Ph.D., is a counseling psychologist, psychotherapist, academician, and founder of Wellnessnetic Care. She currently serves as an Assistant Professor at Apeejay Stya University and has previously taught at K.R. Mangalam University. With over seven years of experience, she specializes in suicide ideation, projective assessments, personality psychology, and digital well-being. A former Research Fellow at NCERT, she has published 14+ research papers and 15 book chapters.

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बुद्धि लब्धि की संकल्पना (CONCEPT OF INTELLIGENCE QUOTIENT)


प्रत्येक मानव शरीर में कुछ शक्तियाँ विद्यमान होती है। मानव शरीर में जन्म से ही उन शक्तियाँ क्षमताओं में बुद्धि का भी अपना स्थान होता है। बुद्धि द्वारा ही शिशु ज्ञान प्राप्त करता है और आगे बढ़ता है।

बुद्धि-लब्धि का अभिप्राय (Meaning of Intelligence Ouotient )- सामान्य योग्यता की गति की ओर संकेत करती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कोल और ब्रूस ने बुद्धि-लब्धि को इस प्रकार बताया है- "बुद्धि-लब्धि यह बताती है कि शिशु की मानसिक योग्यता का किस गति से विकास हो रहा है।"

बुद्धि मापन के लिए बुद्धि-लब्धि (1.Q.) का उपयोग सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक टर्मन ने किया। उनका सबसे बड़ा योग शिशु की शारीरिक आयु के आनुपातिक स्वरूप को ही बुद्धि-लब्धि के नाम से जाना जाता है। इसे निम्नलिखित सूत्र के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

                  बौद्धिक आयु
बुद्धि-लब्धि = चथार्थ आयु x 100

I. Q = (Mental Age)/(Chronological Age) * 100

उपरोक्त सूत्र को उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है। यदि शिशु की बौद्धिक आयु 12 वर्ष है और उसको यचार्थ (वास्तविक) आयु 10 वर्ष है तो बुद्धि लब्धि को इस प्रकार निकाला जा सकता है-

बुद्धि-लब्धि = 12 - x 100 = 120

10 शिशु की बुद्धि-लब्धि 120 हुई, इसका अर्थ है कि शिशु प्रखर बुद्धि का है क्योंकि 100 बुद्धि-लब्धि वाले बालक सामान्य बुद्धि की श्रेणी में आते है। बौद्धिक आयु का जानना अत्यधिक आवश्यक है।

बौद्धिक आयु (Mental Age) - मनुष्य अथवा शिशु का बुद्धि स्तर उसको बौद्धिक आयु की ओर इशारा करता है। बौद्धिक आयु किसी विशेष आयु स्तर पर परिपक्वता को प्रदर्शित करती है। डॉ. माथुर के अनुसार “बौद्धिक आयु किसी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त विकास की सीमा की वह अभिव्यक्ति है जो उसके कार्यों द्वारा मापी जाती है तथा किसी आयु विशेष में उसकी अपेक्षा होती है।" किसी भी शिशु की बौद्धिक आयु और यथार्थ आयु में निश्चित सम्बन्ध नहीं होता है। उदाहरण के लिए 10 वर्ष की बौद्धिक s*pi*g * 7 वर्ष के वास्तविक आयु के शिशु की भी हो सकती है। मनोवैज्ञानिक बिने (Binet) ने बौद्धिक आयु का पता लगाने के लिए अनेक प्रश्नावली सूचियाँ बनाई है। उसमें एक समान आयु के 1,000 बालकों का परीक्षण किया गया जिनमें 60% बालकों ने प्रश्नों को हल कर लिया। उसमें 6 या 7 प्रश्नों को लेकर एक अलग सूची तैयार की गयी, जो शिशु जिस आयु वर्ग के प्रश्नों को हल कर लेता है, वहीं उसकी बौद्धिक आयु हो जायेगी। यदि बालक 7 वर्ष का है और 8 वर्ष की आयु के लिए निर्धारित प्रश्नों को हल कर लेता है तो उस वर्ष की आयु के बालक की बौद्धिक आयु 8 वर्ष होगी।

क्या बुद्धि लब्धि अडिग है (Is IQ. Constant)- मनोवैज्ञानिकों के समक्ष यह प्रश्न बना रहा कि बुद्धि-लब्धि अडिग है अथवा घट-बढ़ जाती है। कुछ अच्छी शैक्षिक परिस्थितियाँ धनात्मक (Positive) रूप में बुद्धि-लब्धि को प्रभावित कर बढ़ा सकती हैं। बुद्धि-लब्धि को प्रभावित करने का एक स्रोत वातावरण भी है। मनोवैज्ञानिक हारजाइक (Horzike) तथा फ्रीमैन (Freeman) ने यह पाया कि योग्यताओं के विकास की गति में अन्तर होता है। उपरोक्त विद्वानों के अनुसार यह स्पष्ट हो जाता है कि बुद्धि-लब्धि में परिवर्तन हो सकता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने कुछ अध्ययन किये हैं जो कि निम्नवत् है-

(i) टर्मन ने यह पता लगाया कि Hall of Fame के 62 सदस्यों में 2216% 643 प्रतिभावान बालकों से सम्बन्धित थे।
(ii) आरनोल्ड गैसल के अनुसार बुद्धि पर वंशानुक्रम का प्रभाव होता है।
(ii) गाल्टन ने 97 व्यक्तियों का अध्ययन किया और पाया कि बुद्धि-लब्धि पर वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों का प्रभाव होता है।
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