निर्देशन सेवाओं के अन्तर्गत परामर्श को एक विशेष स्थान प्राप्त है। निर्देशन तथा परामर्श का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह एक सिक्के के दो पहलू के समान है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि निर्देशन एक शरीर है तो परामर्श उसकी आत्मा है। परामर्श के अभाव में निर्देशन का कोई महत्व नहीं है। शिशु के बौद्धिक, चारित्रिक, संवेगात्मक सन्तुलन में परामर्श बहुत आवश्यक है।
वर्तमान समय में समाज आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और व्यावसायिक रूप से बहुत जटिल हो गया है जिसके कारण इसका महत्व अधिक हो गया है। समाज में भी इसके बढ़ते हुए महत्व के कारण इसे व्यक्तियों की समस्त समस्याओं को दूर करने के लिए इन परामर्श सेवाओं को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में नैतिकता के पतन काल में जहाँ अविश्वास चारों और व्याप्त है, मनुष्य दिशाहीन हो रहा है और वह अपने अमूल्य आधारों को छोड़कर आधारहीन होकर खड़ा है, ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य को सांत्वना तथा धैर्य बँधाने के लिए उचित मार्गदर्शन का कार्य केवल परामर्श के माध्यम से ही सम्भव है।
इस प्रकार से परामर्श निर्देशन के बिना अधूरा है। परामर्श के बिना निर्देशन व्यर्थ है और निर्देशन के बिना परामर्श निष्प्राण है। इस तरह से परामर्श तथा निर्देशन में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित है। परामर्श के विषय में यह कहा जा सकता है कि यह एक कला तथा विज्ञान भी है। जब परामर्श व्यक्तिनिष्ठ होता है और यह कला के रूप में परिवर्तित हो जाता है तब इसमें वस्तुनिष्ठता पर जोर देते हैं तो यह वैज्ञानिक हो जाता है। अत: इस प्रकार से यह कला व विज्ञान दोनों ही है।
परामर्श की परिभाषा (DEFINITION OF COUNSELLING)
अनेक निर्देशन विद्वानों ने निर्देशन सेवाओं को ध्यान में रखकर अपने-अपने मतानुसार परामर्श के विषय में कई परिभाषाएँ दी हैं। इनमें से परामर्श की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं (1) बोर्डिन के शब्दों में, "परामर्श साक्षात्कार विधि के द्वारा किसी व्यक्ति को अपनी समस्याओं का समाधान करने में सहायता देने की प्रक्रिया है।"
(2) जोन्स के अनुसार, "साक्षात्कार के समान, परामर्श में आमने-सामने बैठकर व्यक्ति से व्यक्ति साक्षात्कार होता है।"
(3) वेबस्टर के शब्दों में, "पूछताछ, पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक विनियम है।"
(4) हेम्फेरेया एवं ट्रेक्सलर के मतानुसार, "परामर्श विद्यालय और अन्य संस्थाओं के कर्मचारियों की सेवाओं का व्यक्तियों की समस्याओं के लिए किए जाने वाले उपयोग हैं।"
(5) मायर्स के अनुसार, "परामर्श का अभिप्राय है-दो व्यक्तियों का सम्पर्क, जिसमें एक व्यक्ति को किसी प्रकार की सहायता दी जाती है।"
(6) आर. पी. रॉबिन्स के अनुसार, "परामर्श में वे सभी परिस्थितियों को सम्मिलित कर लिया जाता है। जिनमें परामर्श प्रार्थी अपने आपको वातावरण के अनुसार समायोजित करने में सहायता प्राप्त करता है। परामर्श में दो व्यक्तियों का सम्बन्ध रहता है। परामर्शदाता (Counsellor) तथा परामर्श प्रार्थी (Counselee) (
(7) कार्ल रोजर्स के शब्दों में, "परामर्श एक निश्चित रूप से निर्मित स्वीकृत सम्बन्ध है जो उपबोध्य को उस सीमा तक समझने में सहायता करता है जिसमें वह अपने ज्ञान के प्रकाश में विधात्मक कार्य में अग्रसर हो सके।"
अतः इन सभी परिभाषाओं में परामर्श दो व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध या सम्पर्क को बतलाता है, जिसमें एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को समझने का प्रयत्न करता है। इस प्रक्रिया में दो व्यक्ति एक-दूसरे के आमने सामने होते हैं और परामर्शकर्त्ता, परामर्श लेने वाले व्यक्ति की समस्याओं को दूर करने में अपना सहयोग प्रदान करता है।
परामर्श की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF COUNSELLING)
अनेक विचारकों ने परामर्श की विभिन्न विशेषताएँ बताई हैं, उनमें से परामर्श की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) परामर्श के अन्तर्गत किसी मनुष्य की किसी भी समस्या का निराकरण नहीं किया जाता है बल्कि उसे स्वयं अपनी समस्या का समाधान करने में उसकी सहायता की जाती है।
(2) परामर्श के अन्तर्गत केवल दो मनुष्यों का आपस में सम्पर्क होता है, जिसमें परामर्शकर्त्ता परामर्शप्रार्थी की समस्याओं का समाधान करने में उसकी सहायता करता है। यदि इसमें दो मनुष्यों से अधिक लोग होते हैं तो उसे परामर्श नहीं कहा जा सकता। अतः यह केवल दो व्यक्तियों के बीच का सम्पर्क होता है।
(3) परामर्श के अन्तर्गत परामर्शकर्त्ता परामर्शप्रार्थी को किसी प्रकार का आदेश नहीं देता है या परामर्शप्रार्थी को वह सलाह नहीं देता है। किसी भी फैसले या निर्णय को स्वीकार करना स्वयं परामर्शप्रार्थी का ही अधिकार होता है। परामर्शकर्ता निर्णय को स्वयं की इच्छानुसार चुनाव करने का अधिकार परामर्शप्रार्थी पर छोड़ देता है।
(4) परामर्श के अन्तर्गत व्यक्ति को दी जाने वाली मदद सीधे तौर पर किसी प्रशिक्षित परामर्शकर्ता के माध्यम से निजी रूप से मिलकर ही उस व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाती है।
(5) परामर्श की प्रक्रिया उस समय समाप्त हो जाती है जब परामर्शकर्ता परामर्शप्रार्थी को किसी निर्णय पर पहुँचने में सहायता देता है। अत: इस प्रकार से ये किसी भी व्यक्ति को उचित निर्णय पर पहुँचने में सहायता प्रदान करते हैं।
इस प्रकार से ये सभी विशेषताएँ व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। परामर्श, व्यक्ति को किसी भी निर्णय तक पहुँचने में सहायक होता है।
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